सात मुखी रूद्राक्ष, 7 Mukhi Rudraksha Nepal, 7 Mukhi Rudraksha Original Nepal –
Dr.R.B.Dhawan, top best astrologer in delhi
सात मुखी रूद्राक्ष के ऊपर सात धारियाँ होती हैं, सप्तमुखी रूद्राक्ष अनन्त नाम से विख्यात है। यह रूद्राक्ष सप्तऋषियों का प्रतीक है। ऋषिजन हमेशा संसार के कल्याण में कार्यरत् रहते हैं, अतः सात मुखी रूद्राक्ष धारण करने से सप्त ऋषियों का सदा आशीर्वाद बना रहता है। जाबलोपनिषद के अनुसार सप्तमुखी रूद्राक्ष में सप्त ऋषियों का आशीर्वाद समाहित है। सप्तमुखी रूद्राक्ष को सप्तामातृकाओं का प्रतिनिधि माना गया है। यह रूद्राक्ष सूर्यदेव, सप्तर्षि, अनंग, अनंत (सर्पराज वासुकी), एवं नाग राज को भी समर्पित है। पùपुराण के अनुसार निम्नलिखित दिव्य सर्प इस रूद्राक्ष के सात मुखों में रहते हैं अनंत, कर्कट, पुंडरीक, तक्षक, व शोशिंबन, करोआश और शंखचूड़। इसीलिये इसका धारण किसी प्रकार के विष से प्रभावित नहीं होता। इस रूद्राक्ष के धारण से शरीर पर किसी भी प्रकार के विष का प्रभाव नहीं होता है। जन्म कुण्डली में यदि पूर्ण या आंशिक कालसर्प योग विद्यमान हो तो, सातमुखी रूद्राक्ष धारण करने से पूर्ण अनुकूलता प्राप्त होती है। इसे धारण करने से विपुल वैभव और उत्तम आरोग्य की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने से मनुष्य स्त्रियों के आकर्षण का केन्द्र बना रहता है। इस रूद्राक्ष का संचालक तथा नियंत्रक ग्रह शनि है, यह रोग तथा मृत्यु का कारक है। यह ग्रह ठंडक, श्रम, नपुसंकता, पैरो के बीच तथा नीचे वाले भाग, गतिरोध, वायु, विष और अभाव का नियामक है। यह लोहा पेट्रोल, चमड़ा आदि का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह है। शनि के प्रभाव से दुर्बलता, उदर पीड़ा, पक्षाघात, मानसिक चिंता, अस्थि रोग, क्षय आदि रोग हो सकते हैं। इस रूद्राक्ष को धारण करने से चोरी, व्यभिचार और नशीली औषधियों का सेवन से छुटकारा मिलता है। इसके धारण करने वाले को गुप्त धन प्राप्त होता है, विपरीत लिंग के व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करने की शक्ति इस में समाहित है। यह रूद्राक्ष सप्तमातृका को समर्पित होने से महालक्ष्मी को भी प्रसन्न करता है। अनेक देवी-देवताओं का आशीर्वाद इसे प्राप्त होने के कारण यह रूद्राक्ष कीर्ति, धन और जीवन में प्रगति लाने वाला माना गया है। सप्तमुखी रूद्राक्ष आकृति में प्रायः गोल होता है, तथा इसका इंडोनेशियाई दाना आकार में थोडा छोटा होता है। अधिक दुर्लभ होने के उपरांत भी यह सरलता से मिल जाता है। यह रूद्राक्ष उत्तम स्वास्थ्य और संपत्ति प्रदान करता है। सैकड़ों पाप, सोने की चोरी व गौ वध जैसे पाप इस रूद्राक्ष को धारण करने से नष्ट होते हैं। सभी साधक इसे अवश्य पहनते थे। शास्त्रों में इसे सात आवरण, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि व अंधकार का स्वरूप माना गया है। इससे धारक को भूमि व लक्ष्मी प्राप्त होती है। यह धनागम व व्यापार व उन्नति में सहायक है, अविवाहित का विवाह हो जाता है, जातक के सहयोग, सम्मान व प्रेम में वृद्धि होती है, इसे धारण करने से पौरूष शक्ति में वृद्धि होती है। सप्तमुखी रूद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति अपने व्यापार एवं नौकरी में तरक्की करता है, और जीवन में सब प्रकार के सुखो को प्राप्त करता है। इसे तिजोरी, लाॅकर या नगद पेटी में भी रख सकते हैं। शनि ग्रह का प्रतिनिधि होने से शनि को प्रसन्न कर दरिद्रता दूर करने के लिये, प्रसिद्धि सफलता, सम्मान न्याय, प्रेम, ज्ञान, तेज, बल, प्राधिकार व्यापार में प्रगति और लंबी उम्र के लिये इस रूद्राक्ष को धारण करना चाहिये। सप्तमुखी रूद्राक्ष ऐसे व्यक्तियों को अवश्य पहनना चाहिये जिनको शारीरिक व्याधि सर्दी, खांसी, ब्रोंकाइटिस, गठिया व टी. बी. जैसे रोगों के कष्ट हैं। चाहे आर्थिक अथवा मानसिक किसी भी प्रकार का कष्ट हो, सप्तमुखी रूद्राक्ष पीड़ा कम करने में बहुत सहायक है। यह सब प्रकार के स्नायु संबधी दर्द, महिलाओं के जननांग सम्बंधी रोग (बंध्यत्व भी), हृदय रोग, गले के रोग और ल्यूकोरिया में विशेष सहायक है। हड्डियों के रोग एवं जोडों में दर्द से पीड़ित लोग रोग एवं कष्ट निवारण में इसे बहुत उपयोगी पाते हैं। सप्तमुखी रूद्राक्ष के नियामक ग्रह शनि हैं।
इसका धारण मंत्र है- ॐ हुं नमः। ॐ अनन्ताय नमः। ॐ ह्यीं नमः। ॐ ह्यीं श्रीं क्लीं सौं नमः।
चैतन्य मंत्र- ॐ ह कों हृीं सौ।
उपयोग- आर्थिक हानि, सफलता में विलम्ब होना, शारीरिक स्वास्थ्य, हानि और निराशा।
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