Deepali 2023

पाँच पर्वों का महोत्सव दीपावली महापर्व-

दीपावली का महापर्व कार्तिक अमावस में प्रदोष काल एवं अर्द्धरात्रि व्यापिनी हो, तो विशेष रूप से शुभ होती है-

कार्तिक स्यासिते पक्षे लक्ष्मीर्निदां विमुञ्चति ।
सच दीपावली प्रोक्ताः सर्वकल्याणरूपिणी ।।

ज्योतिर्निबन्ध लक्ष्मीपूजन, दीपदानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेषतः प्रशस्त माना गया है।

कार्तिके प्रदोषे तु विशेषेण अमावस्या निशावर्धके ।
तस्यां सम्पूज्येत् देवीं भोगमोक्ष प्रदायिनीम् ।। (भविष्यपुराण)
दीपावली वस्तुतः पाँच पर्वों का महोत्सव माना जाता है, जिसका आरम्भ कार्तिक कृष्ण त्र्योदशी (धनतेरस) से आरम्भ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाई-दूज) तक रहती है। दीपावली के पर्व पर धन की प्रभूत प्राप्ति के लिए धन की अधिष्ठात्री धनदा भगवती लक्ष्मी का समारोह पूर्वक आवाहन, षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है। आगे दिए गए निर्दिष्ट शुभ और शुद्ध मुहूर्त समय में किसी स्वच्छ एवं पवित्र स्थान पर आटा, हल्दी, अक्षत एवं पुष्पादि से अष्टदल कमल बनाकर श्रीलक्ष्मी का आवाहन एवं स्थापना करके देवों की विधिवत पूजार्चन करनी चाहिए।
इस वर्ष 2013 में कार्तिक अमावस 12 नवम्बर, रविवार को दोपहर 14-45 मिं. के बाद प्रदोष, निशीथ तथा महानिशीथ व्यापिनी होगी। इस लिए दीपावली पर्व 12 नवम्बर के दिन शुभ होगा। सायं दीपावली पर्व स्वाती नक्षत्र, सौभाग्य योग, तुला राशिस्थ चन्द्रमा तथा अर्धरात्रि व्यापिनी अमावस्या युक्त होने से विशेषत शुभ रहेगी।
दीपावली के दिन- दिन के कार्य- इस दिन प्रातः ब्राह्ममुहूर्त्त में उठकर दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो पितृगण तथा देवताओं का पूजन करना चाहिए। सम्भव हो तो दूध, दही और घृत से पितरों का पार्वण श्राद्ध करना चाहिए। और यदि सम्भव हो तो एकभुक्त उपवास कर गोधूलि वेला (सूर्यास्त के समय) में अथवा वृष, सिंह आदि स्थिर लग्न में श्रीगणेश पूजन, कलश पूजन, षोडशमातृका एवं ग्रहपूजन करते हुए भगवती लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इसके अनन्तर महाकाली का दावात के रूप में, महासरस्वती का कलम रूप में, बही आदि के रूप में तथा कुबेर का तुला के रूप में सविधि पूजन करना चाहिए। इसी समय दीपपूजन कर यमराज तथा पितृगणों के निमित्त संकल्प के साथ दीपदान करना चाहिए। यथोलब्ध निशीथादि शुभ मुहूर्तों में मन्त्र-जप, यन्त्र सिद्धि आदि अनुष्ठान सम्पादित करने चाहिए।

आवाहन मंत्र- कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप हुये श्रियम् ।।
ॐ गं गणपतये नमः ।। लक्ष्म्यै नमः ।।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया। या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वदर्चनात् ।।
से लक्ष्मी; एरावतसमारूढो वज्रहस्तो महाबलः। शतयज्ञाधिपो देवस्तस्मा इन्द्राय ते नमः।
मन्त्र से इन्द्र की और कुबेर की निम्न मन्त्र से पूजा करें-
कुबेराय नमः, धनदाय नमस्तुभ्यं निधपद्याधिपाय च ।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादि सम्पदः ।।

पूजन सामग्री में विभिन्न प्रकार की मिठाई, फल- पुष्पाक्षत, धूप, दीपादि सुगन्धित वस्तुएं सम्मिलित करनी चाहिए।

दीपावली पूजन में शुद्ध मुहूर्त -1. प्रदोष, 2. निशीथ एवं महानिशीथ काल के अतिरिक्त 3. चौघड़ियां मुहूर्त्त भी पूजन, बही-खाता पूजन, कुबेर पूजा, जपादि अनुष्ठान की दृष्टि से विशेष शुभ माने जाते है।

इस वर्ष प्रदोष काल – 12 नवम्बर, 2023 ई. को सूर्यास्त से लेकर अर्थात- 17 घं. 30 मिं. से लेकर 20 घ 12 मि तक प्रदोषकाल व्याप्त रहेगा।

स्थिर लग्न- (वृष) सायं 17ः37 मि. से 19ः32 तक स्थिर लग्न वृष आरम्भ होगी। यह लग्न तथा मिथुन लग्न का पूर्वार्ध का समय विशेष शुभ है।

शुभ की चौघड़ियां- 17ः27 से 19ः08 मि. तक शुभ की चौघडिया रहेगी। तदुपरान्त अमृत की चौघड़ियां भी 19ः10 से 20ः51 तक शुभ हैं। अतः 17 बजकर 37 मिनट से 20 बजकर 12 मिनट तक का समय तीन प्रकार से शुभ और शुद्ध मुहूर्त होगा।

इस के अतर्गत- 20 बजकर 9 मिनट से 20ः12 तक निशीथकाल भी रहेगा। यह समय चार प्रकार से शुभ और शुद्ध मुहूर्त होगा। इन में से अपनी सुविधा अनुसार शुद्ध मुहूर्त का चुनाव करें। इस मुहूर्त में श्रीगणेश-लक्ष्मी पूजन प्रारम्भ कर लेना चाहिए। इसी काल में दीपदान, श्रीमहालक्ष्मी पूजन, कुबेर पूजन, बही-खाता पूजन, धर्म एवं गृह स्थलों पर दीप प्रज्वलित करना, ब्राह्मणों तथा अपने आश्रितों को भेंट, मिष्ठान्नादि बांटना शुभ होगा।

तीन प्रकार शुद्ध मुहूर्त- 1. प्रदोषकाल, 2. स्थिर वृष लग्न, 3. शुभ चौघडिया का शुभ एवं शुद्ध मुहूर्त 17ः37 से 20ः12 तक रहेगा।

Dr.R.B.Dhawan Guruji
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धन त्रयोदशी -कुबेर पूजा।

Dr.R.B.Dhawan guruji

धन त्रयोदशी (10 नवम्बर, शुक्रवार)-
धन-त्रयोदशी (धन तेरस) प्रदोषव्यापिनी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनायी जाती है। इसदिन चाँदी, पीतल आदि का बर्तन खरीदना शुभ माना गया है। इसदिन सायंकाल के समय घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त दक्षिणाभिमुख करके एक दीपक तेल से भरकर प्रज्वलित करें, तथा गन्धाक्षतादि से पूजन कर एक पात्र में अनाज रखकर उस पर प्रज्वलित दीप रख देवें।

कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं वणिर्दघात् अपमृत्यु विनश्यति ।।

यह पर्व सूर्यास्त के बाद त्रि-मुहूर्त्त (लगभग 6 घड़ी) व्यापिनी त्रयोदशी ग्रहण करनी चाहिए।

सूर्यास्तमानोत्तर त्रिमुहूर्त्तात्मक प्रदोषव्यापिनी त्रयोदशी ग्राह्या।। (धर्मसिन्धु) इस वर्ष त्रयोदशी 10 नवम्बर, शुक्रवार को पूर्णतया प्रदोषव्यापिनी है। अतः धन त्रयोदशी 10 नवम्बर, शुक्रवार को ही शास्त्रसम्मत मनाई जानी चाहिए।

प्रदोषव्यापिनी कार्तिक कृष्णत्रयोदशी के दिन प्रदोष में यम को दीपदान किया जाता। अतः इसीदिन यम दीपदान होगा।


धन त्रयोदशी कुबेर साधना।
महाराज वैश्रवण कुबेर की उपासना से संबंधित मंत्र, यंत्र, ध्यान एवं उपासना आदि की सारी प्रक्रियायें श्रीविद्यार्णव, मंत्र महार्णव, मंत्र महोदधि, श्रीतत्त्व निधि तथा विष्णुधर्माेत्तरादि पुराणों में विस्तार से निर्दिष्ट हैं। इन ग्रंथों के अनुसार इनके अष्टाक्षर, षोडशाक्षर तथा पंचत्रिंशदक्षरात्मक छोटे-बड़े अनेक मंत्र प्राप्त होते हैं। वहां मंत्रों के अलग-अलग ध्यान भी बताए गये हैं। मंत्र साधना में गहन रूची रखने वाले साधक इन ग्रन्थों का अवलोकन कर सकते हैं।
यहाँ हम एक सरल साधना पद्धति बता रहे हैं जो साधना धन-त्रयोदशी के दिन की जानी चाहिये यदि कोई साधक इस साधना को दीपावली की रात्रि में करना चाहे तो उस महापर्व पर भी यह साधना कर सकते हैं। अथवा दोनो ही दिन (धन-त्रयोदशी तथा दीपावली पर) यह साधना सम्पन्न की जा सकती है।
इस वर्ष धनत्रयोदशी 10 नवम्बर 2013 दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से आरम्भ होकर 11 नवम्बर के दिन दोपहर 1 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। 10 नवम्बर के दिन शुभ मुहूर्त में कुबेर पूजा और साधना करने से पूरा वर्ष धन समृद्धि रहती है। यह साधना स्थिर लग्न तथा प्रदोषकाल में सम्पन्न की जाती है। प्रदोषकाल आज सांय 5ः30 से 08ः07 तक रहेगा। और वृषभ ‘स्थिर लग्न’ आज सांय 05ः46 से 07ः42 तक रहेगी। अतः कुबेर साधना के लिए सांय 05ः46 से 07ः42 तक का मुहूर्त शुद्ध है।
आज के दिन शुभ चौघड़िया के मुहूर्त में सोना-चांदी अथवा भौतिक वस्तुएं खरीदी जाती हैं। आज की शुभ चौघडियां इस प्रकार हैं- 1. शुभ की चौघडिया-दोपहर 12ः04 से 13ः25 तक। 2. लाभ की चौघडिया- रात्रि 20ः47 से 120ः26 तक।

कैसे करें कुबेर साधना-
कुबेर साधना के लिए शुद्ध रजत (चांदी) पर निर्मित कुबेर यंत्र तथा जप के लिये रूद्राक्ष की 108 दाने की माला का प्रयोग किया जाना चाहिये। इसमें कुबेर यंत्र यदि चांदि में ना मिल सके तो तांम्र पर भी ले सकते हैं। किसी विद्वान से यंत्र को प्राण प्रतिष्ठित करवा लें, और एक नई रूद्राक्ष माला पहले ही ले लें।
धन-त्रयोदशी की सांय 05ः46 बजे से 07ः42 के मध्य उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। पुरूष साधक पीले वस्त्र तथा महिलायें पीली साड़ी पहनकर बैठें। सामने एक लकड़ी के पटरे पर पीला रेशमी वस्त्र बिछाकर उस पर प्राण प्रतिष्ठित श्री कुबेर यंत्र स्थापित करें, और साथ ही शुद्ध घी का दीपक जलाकर पंचोपचार पूजा करें मिठाई का भोग लगावें तथा विनियोगादि क्रिया करके 11 माला रूद्राक्ष की माला से कुबेर मंत्र का जप करें।
जप सम्पूर्ण होने पर प्रसाद रूप में मिठाई परिजनों को वितरण करें और फिर रात्रि में उसी पूजा स्थल में ही निद्रा विश्राम करें। प्रातः शेष फूलादि सामग्री जल में विसर्जित कर दें, तथा श्री कुबेर यंत्र को पीले आसन सहित अपनी तिजोरी कैश बॉक्स या अलमारी अथवा संदूक में रख दें। तथा रूद्राक्ष की जप माला को गले में धारण करें।

विनियोगः-
सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर निम्नलिखित विनियोग करें-
अस्य श्रीकुबेर मंत्रस्य विश्रवा ऋषिः बृहती छन्दः धनेश्वरः कुबेरो देवता ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

करन्यासः-
विनियोग के उपरांत करन्यास करें-
यक्षाय अंगुष्ठाभ्यां नमः।
कुबेराय तर्जनीभ्यां नमः।
वैश्रवणाय मध्यमाभ्यां नमः।
धनधान्याधिपतये अनामिकाभ्यां नमः।
धनधान्य समृद्धिं में कनिष्ठकाभ्यां नमः।
देहि दापय स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।

षडंगन्यासः-
करन्यास के उपरांत षडंगन्यास करें-
यक्षाय हृदयाय नमः।
कुबेराय शिरसे स्वाहा।
वैश्रवणाय शिखायै वषट्।
धनधान्याधिपतये कवचाय हुम।
धनधान्य समृद्धि में नेत्रत्रयाय वौषट्।
देहि दापय स्वाहा अस्त्राय फट्।

कुबेर का ध्यानः-
इनके मुख्य ध्यान श्लोक में इन्हें मनुष्यों के द्वारा पालकी पर अथवा श्रेष्ठ पुष्पक विमान पर विराजित दिखाया गया है। इनका वर्ण (रंग) गारुडमणि या गरुडरत्न के समान दीप्तिमान् पीतवर्णयुक्त बतलाया गया है, और समस्त निधियां इनके साथ मूर्तिमान् होकर इनके पार्श्वभाग में निर्दिष्ट हैं। ये किरीट मुकुटादि आभूषणों से विभूषित हैं। इनके एक हाथ में श्रेष्ठ गदा तथा दूसरे हाथ में धन प्रदान करने की वरमुद्रा सुशोभित है। ये उन्नत उदरयुक्त स्थूल शरीर वाले हैं। ऐसे भगवान् शिव के परम मित्र सुहृद् भगवान् कुबेर का ध्यान करना चाहिए-

मनुजवाह्यविमानवरस्थितं गरुडरत्ननिभं निधिनायकम।
शिवसखं कमुकुरादिविभूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलम।।

अर्थिक सम्पन्नता के लिये कुबेर मंत्र-
यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्य समृद्धिं में देहि दापय स्वाहा।

वैसे तो इस मंत्र की जप संख्या एक लक्ष (एक लाख) कही गयी है। परंतु धन त्रयोदशी की रात्रि में जितना हो सके विधि विधान से इस मंत्र का जप करना ही प्रयाप्त होता है। मंत्र का जप सम्पन्न होने पर तिल और शुद्ध घी से दशांश हवन करना चाहिये।

दीपावली पूजन मुहूर्त

Dr.R.B.Dhawan Guruji

दीपावली (श्रीमहालक्ष्मी पूजन) मुहूर्त
(24 अक्तूबर 2022 सोमवार)
इस वर्ष 24 अक्तूबर 2022 सोमवार को अमावस सांय लगभग 05 घं. 15 मिनट से आरम्भ हो रही है, तथा 25 अक्तूबर मंगलवार को यह अमावस्या सांय 4 बजे तक रहेगी। उसके पश्चात् प्रतिपदा आरम्भ हो जायेगी। दीपावली पर्व रात्रि प्रधान पर्व है, और पूजन के समय अमावस्या होनी चाहिये। इस वर्ष दीपावली 24 अक्तूबर 2022 सोमवार के दिन होगी, तथा महालक्ष्मी पूजा रात्रि में ही सम्पन्न होगी। अन्नकूट व गोवर्धन पूजा का पर्व 25 अक्तूबर को प्रशस्त होगा।
दीपावली के दिन प्रदोषकाल से लेकर मध्यरात्रि के बीच श्री महालक्ष्मी पूजन, दीपमाला, मंत्र-जप-अनुष्ठानादि, श्रीगणेश पूजन, कलश षोडशमातृका, ग्रह पूजन एवं भगवान श्रीविष्णु, भगवती लक्ष्मी सहित षोडशोपचार पूजन, कुबेर पूजन चतुर्मुखी दीप प्रज्जवलित करना, जप ध्यानादि करने का विशेष महत्त्व रहता है। दीपावली को रात्रि जागरण करते हुये श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, श्रीलक्ष्मीसूक्त, श्रीसूक्त, पुरूषसूक्त आदि एवं श्री रामरक्षास्तोत्र का पाठ करना प्रशस्त होता है। इस वर्ष दीपावली का पर्व 24 अक्तूबर सोमवार की अमावस एवं चित्रा नक्षत्र का योग है, सोमवार की दीवाली मंत्रजप, सिद्धि एवं तांत्रिक प्रयोगों के लिये विशेष रूप से सिद्धिदायी मानी जाती है। दीपावली की रात्रि में महालक्ष्मी पूजन के लिये स्थिर लग्न में पूजा साधना करने का विशेष महत्व है। दीपावली के दिन रात्रिकालीन लग्नों में केवल वृष तथा सिंह लग्न ही स्थिर लग्न रहती हैं।
इस वर्ष 24 अक्तूबर 2022 की रात्रि में वृष लग्न सांय 6ः45 से 7ः20 तक और सिंह लग्न मध्य रात्रि 02: 15 से 03ः40 तक का मुहूर्त लक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ है। वृष तथा सिंह लग्न के मध्य ही दीपवली पूजन करने से लक्ष्मीजी स्थिर रहती हैं अन्यथा लक्ष्मी जी अपने स्वाभावानुसार चंचल तो हैं ही। इस पूजा के मुहूर्त में ही मन्दिर में भी दीप प्रज्वलित करके, स्थिर लग्न के मध्य ही श्रीलक्ष्मी पूजन प्रारम्भ करें। इस मुहूर्त में दीपदान, श्रीमहालक्ष्मी पूजन व गणेश पूजन, कुबेर पूजन, बही-खाता पूजन, धर्म एवं गृह स्थलों पर दीप प्रज्वलित करना, ब्राह्मणों तथा अपने आश्रितों को भेंट, मिष्ठान्नादि बांटना शुभ होता है। इस अवधि में श्रीमहालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी पूजन, कुबेरादि पूजन, श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त, पुरूषसूक्त तथा अन्य मंत्रों की साधना जपानुष्ठान करना सिद्धिप्रदायक होता है।

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दरिद्रता निवारण महालक्ष्मी मंत्र प्रयोग

Dr.R.B.Dhawan Guruji

दरिद्रता को दूर भगायें
सदा के लिये
इस मंत्र की साधना यदि नियम पूर्वक कर ली जाये तो, चाहे अनेक वर्षो से भी दरिद्रता पीछा नहीं छोड़ रही हो, चाहे अनेक शत्रु घोर-अतिघोर तंत्र का प्रयोग करते हों, चाहे अपने भी पराये हो गये हों, तब भी माँ लक्ष्मी की कृपादृष्टि अवष्य होती है। यह अपने आप में अद्वितिय एवं अत्यन्त प्रभावशाली मंत्र प्रयोग है, यद्यपि यह साधना अत्यन्त सरल प्रतीत होती है, परन्तु इसका प्रभाव अपने आप में अचूक है।
पर्व काल में इस मंत्र का केवल 108 बार जप करने मात्र से ही लक्ष्मी जी की कृपा आरम्भ हो जाती है। जिस ने भी इस साधना को सम्पन्न किया, अतुलनीय ऐश्वर्य प्राप्त किया है। इस मंत्र साधना की विशेषता यही है कि, इस साधना को हर वर्ष दीपावली पर 12 वर्ष तक लगातार करते रहने पर भगवती लक्ष्मी साक्षात जाज्व-ल्यमान स्वरूप में प्रगट होती है।
इस साधना को दीपावली की मध्यरात्रि में स्थिर लग्न (सिंह लग्न) के मुहर्त में सम्पन्न कर लेना चाहीए जिससे कि भगवती लक्ष्मी साधक के घर में सदा-सदा के लिये निवास करती हैं, और उसे सभी निधियों से पूर्णता प्रदान करती है। पूज्यपाद शंकराचार्य ने स्वयं इस साधना की बेहद प्रशंसा की है, और कहा है कि यह साधना कलियुग में गृहस्थ लोगों के लिए कल्प वृक्ष के समान वरदान स्वरूप है।
इस वर्ष दीपावली पर्व पर आप भी यह साधना करें और पूर्ण रूप से सम्पन्न व ऐश्वर्यवान बने, जिससे कि पूरे विश्व में अपने ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर सकें। आदिकाल से यह साधना एक प्रकार से लुप्त ही हो गई थी। ग्रन्थों में इस साधना का वर्णन तो मिलता रहा, परन्तु इस साधना की बारीकियां और इसके प्रामाणिक मंत्र कहीं कहीं प्राप्त होते हैं। परंतु इसके प्रभाव और इसकी प्रामाणिकता के बारे में अनेक प्राचीन ग्रन्थ भरे पडे हैं।

साधना का मुहूर्त –
यह अतिदुर्लभ तथा अति महत्वपूर्ण गोपनीय मंत्र साधना दीपावली की मध्यरात्रि में स्थिर लग्न (सिंह लग्न) के मुहर्त में सम्पन्न की जाती है। इस वर्ष सिंह लग्न का यह मुहूर्त 24 अक्तूबर 2022 की मध्य रात्रि 1 बजकर 15 मिनट से 3 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।
इस मंत्र साधना में मुख रूप से सात पदार्थो की आवश्यकता होती है, जो कि शास्त्र विधि के अनुसार निम्नलिखित है-
1. फूल की एक माला, कुछ खिले हुये फूल, 2. ताम्र का जलपात्र, 3. पांच मिट्टी के छोटे तथा इक्कीस बड़े दीपक, 4. एक चुटकी केसर, 5. जटा वाला नारियल, 6. फल, 7. नैवेद्य (मिठाई) आदि। पूजन सामग्री में- रोली, कलावा, पान के पत्ते, साबुत सुपारी, घूप, लौंग, ईलाईची, तथा दीपक के लिये शुद्ध घी पहले से ही साधना कक्ष (पूजा घर) में रख लेना चाहिये।

साधना प्रयोग-
दीपावली के दिन सांयकाल ही पूजा कक्ष को सजा संवार कर तैयार कर लें साधक को चाहिये कि साधना के समय पीली धोती धारण करे, स्त्री साधिका हो तो बालों को धो ले और पीठ पर उन बालों को खुला रखे। यदि साधक चाहे तो पति-पत्नी दोनों आसन पर बैठ कर इस साधना को सम्पन्न कर सकते हैं।
अर्घरात्रि में जब सिंह लग्न का मुहूर्त आरम्भ हो उस मुहूर्त में- सबसे पहले साधक कमलासन पर विराजमान महालक्ष्मी के चित्र को फ्रेम में मंढ़वा कर अपने सामने लकडी़ की चौकी पर पीला रेशमी वस्त्र बिछाकर उस पर रख दें, और उसे जल से पोंछकर उस पर शुद्ध केसर की बिन्दी लगावें, सामने नैवेद्य अर्पित करें और फिर लक्ष्मी के चित्र के सामने ही एक चावल की ढ़ेरी बना उस पर तांबे का छोटा सा कलश जल से भर कर स्थापित करें, और उस पर लाल कपड़ा रख कर उस कपड़े को कलावे के द्धारा कलश के मुख पर बांध दें, फिर उस पर थोड़े से चावल रखकर नारियल स्थापित कर दें, फिर तीन बार जल का छींटा देकर इनकी पूजा सामगी से पूजा करे और पुष्प, घूप, दीप, कलावा, रोली तथा पान, सुपारी, लौंग व ईलाईची अर्पित करें।
साथ ही पांच छोटे मिट्टी के दीपक एक पीतल की थाली में घी के लगावें और इक्कीस बडे दीपक अपने साधना कक्ष के द्वार पर सजा दें। जब जक साधना सम्पन्न करें तब तक घी के दीपक लगे रहने चाहियें। जो पुष्पों की माला लाई हुई है, वह साधक फ्रेम किये हुये लक्ष्मीजी के चित्र पर चढ़ा दे ।
शास्त्रों में विधान है, कि- सबसे पहले हाथ में जल ले कर संकल्प करें, फिर विनियोग और फिर न्यासादि करके देवी का ध्यान करना चाहिये। संकल्प में हाथ में जल लेकर यह भावना की जाती है कि- मैं आज कार्तिक अमावस्या की रात्रि में अटूट धन सम्पत्ति, ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए यह दुर्लभ साधना सम्पन्न कर रहा हूँ तथा संकल्प के पश्चात विनियोग किया जाता है-

विनियोग-
ऊँ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मन्त्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाद्या भगवति सिद्ध लक्ष्मी सहस्राक्षरी सहस्र रूलिणी महाविद्याया श्री इन्द्र ऋषि गायत्र्यादि नाना छन्दांसि, नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाद्या भगवति सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे पाठे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास-
श्री इन्द्र ऋषिभ्यां शिरसे नमः।
गायत्र्यादि नाना-छन्दौभ्यौ नमः मुखे।
नव कोटि शक्ति रूपा श्रोमदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थ जपे पाठे विनियोगाय नमः सर्वागे।

अंग न्यास-
ऊँ श्रीं सहस्रारे।
ऊँ ह्रीं नमो माले।
ऊँ क्लीं नमो नेत्र युगले।
ऊँ ऐ नमः हस्त युगले।
ऊँ श्रीं नमः हृदये।
ऊँ क्लीं नमः कटौ।
ऊँ ह्रीं नमः जंगा द्वये।
ऊँ श्रीं नमः पादादि सर्वागे।
उपरोक्त लिखित मंत्रों का उच्चारण करके फिर चित्र के सामने भगवती लक्ष्मी को श्रद्धा युक्त प्रणाम कर देवी के स्वरूप का मन ही मन ध्यान करें। फिर श्री सिद्ध महालक्ष्मी महाविद्या मंत्र का 108 बार श्रद्धापूर्वक पाठ करें-

श्री सिद्ध महालक्ष्मी महाविद्या मंत्र-
ऊँ ऐ हृीं श्रीं ह् सौ श्रीं ऐं हृीं क्लीं सौः सौः ऊँ ऐं हृीं क्लीं श्रीं जय जय महा लक्ष्मी, जगदाद्वे, विजये, सुरा सुर त्रिभुवन निदाने, दयांकुरे, सर्व देव तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते, विधि वरदे, सच्चिदानन्दे, विष्णु देहावृते, महा मोहिनी, नित्य वरदान तत्परे, महा सुधाब्धि वासिनि, महा तेजो धारिणि, सर्वाधारे, सर्व कारण कारिणे, अचिन्त्य रूपे, इन्द्रादि सकल निर्जर सेविते, साम गान गायन परिपूर्णोदय कारिणी, विजय, जयन्ति, अपराजिते, सर्व सुन्दरि, रक्तांशुके, सूर्य कोटि संकांशे, चन्द्र कोटि सुशीतले, अग्निकोटि दहन शीले यम कोटि वहन शीले ओमकार नाद बिन्दु रूपिणि, निगमागम भागदायिनि, त्रिदश राज्य दायिनि, सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणि, दिव्य देहिनि, निर्गुणो सगुणे, सदसद् रूप धारिणी, सुर वरदे, भक्त त्राण तत्परे, बहु वरदे, सहस्राक्षरे, अयुताक्षरे, सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणि, अनेक लक्षलक्ष स्वरूपे अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायिके, चतुर्विशंति मुनि जन सेस्थिते, चतुर्दश भुवन भाव विकारिणे, गगन वाहिनि, नाना मन्त्रराज विराजिते, सकल सुन्दरी गण सेविते, चरणारविन्दे, महा त्रिपुर सुन्दरि, कामेश दयिते, करूणा रस कल्लोलिनि, कल्प वृक्षादि स्थिते, चिन्ता मणि द्वय मध्यावस्थिते, मणि मन्दिरे निवासिनि, विष्णु वक्षस्थल कारिणे, अजिते, अमिले, अनुपम चरिते, मुक्ति क्षेत्राधिष्ठायिनी, प्रसीद प्रसीद, सर्व मनोरथान पूरय पूरय, सर्वारिष्टान छेदय छेदय, सर्व ग्रह पीड़ा ज्वराग्र भयं विध्वंसय विध्वंसय, सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय, मोक्ष मार्गाणि दर्शय दशय, ज्ञान मार्ग प्रकाशय प्रकाशय, अज्ञान तमो नाशय नाशय, धन धान्यादि वृद्धिं कुरू कुरू, सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय, मां रक्ष रक्ष, सर्वायद्भ्यो निस्तारय निस्तारय, वज्र शरीरं साधय साधय हृीं क्लीं सिद्ध महालक्ष्मी महा विद्यायै नमः।
साधक जब इस मंत्र की साधना करता है तब एक विशेष प्रकार की दिव्य ऊर्जा वातावरण में प्रकट होती है। यह मंत्र उच्चारण करते हुए पढ़ें। मंत्र पाठ के बाद आप स्वयं महसूस करेंगे कि यह मंत्र कितना अधिक तेजस्वी और प्रभावशाली है, हर वर्ष दीपावली की मध्य रात्रि में इस सिद्ध मंत्र का 108 बार पाठ कर यह साधना सम्पन्न कर लेने मात्र से 12 वर्ष में यह विद्या सिद्ध होती है। मंत्र पाठ पूर्ण होने पर साधक माता लक्ष्मी तथा गणपति को मिठाई का भोग लगा कर वह प्रसाद घर के सभी परिजनों को वितरित कर दें, और फिर सभी मिलकर महालक्ष्मी तथा गणपति को अपने घर में हमेशा-हमेशा के लिये स्थाई निवास की प्रार्थना करते हुये पूजा सम्पन्न करें।
नारियल को लाल वस्त्र में बांधकर घर के या व्यापार स्थल के लॉकर में रख लें और मिट्टी के दीपक, फूलादि शेष पूजा सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें अथवा भूमि में दबा दें।

Teligram : 9810143516

सिद्धेश्वरी महालक्ष्मी मंत्र प्रयोग

सिद्धेश्वरी महालक्ष्मी मंत्र प्रयोग –

Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

तंत्र शास्त्रों में वर्णित है, कि दीपावली के दिन किसी भी प्रकार का तांत्रिक प्रयोग जैसे- शत्रु मारण प्रयोग, स्तम्भन प्रयोग, वशीकरण प्रयोग आदि सम्पन्न करने से पूर्ण सफलता मिलती है, परंतु मैं कहता हूँ इस साधना को दीपावली की रात्रि सम्पन्न करने वाले साधक के लिये किसी भी ऐसे प्रयोग की आवश्यकता ही नहीं रहती जिससे किसी की हानि हो। क्योकि इसका कोई शत्रु होता ही नहीं, और अगर होता भी है, तो वह स्वयं ही परांस्त हो जाता है। आवश्यकता केवल इस बात की है, कि सिद्धेष्वरी महालक्षमी प्रयोग को ठीक प्रकार से सम्पन्न कर लिया जाये। यह ध्यान अवश्य रखें कि साधना पूर्ण विधि-विधान सहित शुद्ध सामग्री के साथ सम्पन्न की जाये।
वैसे तो यह साधना कार्तिक मास में कभी भी सम्पन्न की जा सकती है, लेकिन दीपावली के दिन इस प्रयोग को करने से विशेष सफलता प्राप्त होती है, इस वर्ष दीपावली का यह पर्व 24-25 अक्तूबर 2022 के दिन पड रहा है। इस वर्ष दीपवली का पर्व साधना करने वाले साधकों के लिए विशेष है, क्योकि दीपवाली के दिन सूर्य ग्रहण भी रहेगा।
साधना विधान इस प्रकार है- इस वर्ष अमावस्या 25 अक्तूबर के दिन सॉय लगभग 4 बजे तक ही रहेगी और 24 अक्तूबर के दिन चतुर्दशी लगभग सॉय 5ः30 तक रहेगी। क्योकि दीपावली रात्रि प्रधान पर्व है, इस लिए दीपावली 24 अक्तूबर की रात्रि में ही मनाई जाएगी। साधना समय भी 24 अक्तूबर की रात्रि 10 बजे के बाद ही रहेगा।
24 अक्तूबर की रात्रि 10 बजे के बाद ही यह साधना प्रारम्भ करनी चाहिये, इस दिन आधी रात को साधक लाल धोती और यदि आप महिला हैं तो, तो लाल साड़ी पहन कर पूजा स्थान पर बैठें, सामने एक बड़ा सा दीपक शुद्ध गाय के घी से लगा लें। इसके बाद एक कांसे की थाली या कांसे की प्लेट को दीपक की लौ के ऊपर थोड़ी देर रखने पर उस थाली में जो कालिख सी लग जायेगी। उसे किसी तिनके से अलग कर लें, उस कालिख से ही एक कोरे कागज पर भगवती लक्ष्मी का चित्र बनाना हैं, यदि आप अच्छे चित्रकार न हों, तो इसमें चिन्ता करने की जरूरत नहीं है, एक देवी स्त्री की आकृति बना लें, जो लक्ष्मी जैसी हो, फिर इस चित्र को अपने सामने रख दें, और उस लक्ष्मी के चित्र के चारों ओर गोलाई में अष्टगणेश ‘‘गणेश जी की 8 आगेट रत्न से बनी अभिमंत्रित छोटी-छोटी मूर्तियां रख लें।
इसके बाद उस लक्ष्मीजी के चित्र और उन श्री गणेश की पंचोपचार पूजा कर लें, पंचोपचार पूजा में गणपति के साथ देवी का ध्यान करते हुए- पुष्प, चावल, रोली, कलावा, साबुत सुपारी और मिश्री, अर्पित करके सिद्धेश्वरी महालक्ष्मी मंत्र की 21 माला का जप करें। माला में आपको शुद्ध स्फटिक से बनी माला का प्रयोग करना है।

मंत्र- ॐ सिद्धेश्वरी महालक्ष्म्यै नमः।

अन्तिम माला के जप के समय अपने पास एक बर्तन में सरसों ले कर प्रत्येक मंत्र के जप के समय प्रत्येक दिशा में निरन्तर थोड़ी थोड़ी सरसों फेंकते रहें, इससे सभी दिशाओं में सिद्धेश्वरी महालक्ष्मी की ऊर्जा सक्रीय हो सके, इस से किसी भी दिशा में स्थित बाधक तत्व या शत्रु नष्ट होते हैं।
साधना सम्पन्न होने के पश्चात साधक उसी स्थान पर सो जाये, और दीपक को रात भर अवश्य जलता रहने दें, प्रातः जल्दी (सूर्योदय से पहले) उठकर देवी का चित्र और अष्टगणेश एक लाल कपड़े में बांधकर घर में ही पूजा गृह या किसी ऊॅची जगह रख दें। माला का प्रयोग दैनिक पूजा में प्रतिदिन की पूजा में कर सकते हैं। इस मंत्र की एक माला जप नियमित भी करें तो सिद्धेश्वरी लक्ष्मी की कृपा वर्षभर बनी रहेगी।
यह साधना सिद्ध हो जाने के पश्चात साधक के सभी महत्वपूर्ण कार्यों में आ रही बाधायें शीघ्र दूर होनी प्रारम्भ हो जाती है, तथा शत्रुओं की बुद्धि, बल क्षीण होने लगती है।

सिद्धेश्वरी महालक्ष्मी प्रयोग के लिये साधना सामग्री- हमारे कार्यालय से मंगवा सकते हैं। इस के लिये न्यौक्षावर राशि 6000/-रू मात्र है। इस पैकिट में लघु आकार की 8 आगेट रत्न से बनी अभिमंत्रित श्री गणेश प्रतिमा तथा एक शुद्ध स्फटिक की अभिमंत्रित माला होगी। साधना सामग्री के लिये कम से कम 20-25 दिन पहले साधना सामग्री मंगवा लेना उचित होगा। जिस से की समय से पूर्व आपके पास साधना सामगी पहुँच जाये। सामग्री के लिए कार्यालय में इस नम्बर पर सम्पर्क करें-
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कलंक चतुर्थी, चन्द्रदर्शन क्यों निषेध है?

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कलंक चतुर्थी की रात्रि चन्द्रदर्शन क्यों निषेध है?
(कलंक चतुर्थी 31 अगस्त 2022)
भाद्रपदमास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी सिद्धविनायक चतुर्थी के नाम से जानी जाती है। इसमें किया गया दान, स्नान, उपवास और अर्चन गणेशजी की कृपा से सौ गुना हो जाता है, परन्तु इस चतुर्थी को चन्द्रदर्शन का निषेध किया गया है। इस दिन चन्द्रर्शन से मिथ्या कलंक लगता है। अतः इस तिथि को चन्द्रदर्शन न हो, ऐसी सावधानी रखनी चाहिए। यदि दैववशात् चन्द्रदर्शन हो जाए तो इस दोष-शमन के लिए निम्न मंत्र का पाठ करना चाहिए- सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्योष स्यमन्तकः।। ओर स्यमन्तकमणि आख्यान सुनाना चाहिए। यह आख्यान इस प्रकार है- द्वापर युग में द्वारकापुरी में सत्राजित नामक एक यदुवंशी रहता था। वह भगवान् सूर्य का परम भक्त था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उसे स्यमन्तक नामकी मणि दी, जो सूर्य के समान ही कान्तिमान थी। वह मणि प्रतिदिन आठ भार सोना देती थी तथा उसके प्रभाव से सम्पूर्ण राष्ट्र में रोग, अनावृष्टि, सर्प, अग्नि, चोर तथा दुर्भिक्ष आदि का भय नहीं रहता था। एक दिन सत्राजित् उस मणि को धारणकर राजा उग्रसेन की सभा में आया, उस समय मणि की कान्ति से वह दूसरे सूर्य के समान दिखायी दे रहा था। भगवान् श्रीकृष्ण की इच्छा थी कि यदि वह दिव्य रत्न राजा उग्रसेन के पास रहता तो सारे राष्ट्र का कल्याण होता, इधर सात्राजित् को यह मालूम हो गया कि श्रीकृष्ण मेरी मणि ले लेना चाहते हैं। अतः उसने वह मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी। एक दिन प्रसेन उस मणि को गले मंे बांधकर घोड़े पर सवार हो वन में आखेट के लिए गया और वहां एक सिंह द्वारा मारा गया। प्रसेन के न लौटने पर यादवों में कानाफूसी होने लगी कि श्रीकृष्ण इस मणि को ले लेना चाहते थे, अतः उन्होंने ही प्रसेन को मारकर मणि ले ली होगी। उधर वन में मुंह में मणि दबाये हुए सिंह को ऋक्षराज जाम्बवान् ने देखा तो उसे मारकर स्वयं मणि ले ली और ले जाकर बच्चे को खेलने के लिए दे दी, जिससे वह खेला करता था। इधर द्वारका में उठते हुए लोकापवाद के स्वर श्रीकृष्ण के कानों तक पहुंचे, वे राजा उग्रसेन से परामर्शकर कुछ साथियों को ले प्रसेन के घोड़े के खुरों के चिन्हों को देखते भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी चन्द्रदर्शन-निषेध हुए वन में पहुंचे। वहां उन्होंने घोड़े और प्रसेन को मृत पड़ा पाया तथा उनके पास में सिंह के चरणचिन्ह देखे। उन चिन्हों का अनुसरण करते हुए आगे जाने पर उन्हें सिंह भी मृत पड़ा मिला। वहां से ऋक्षराज जाम्बवान् के पैरों के निशान देखते हुए वे लोग जाम्बवान की गुफा तक पहुंचे। श्रीकृष्ण ने कहा कि अब यह तो स्पष्ट हो चुका है कि घोड़े सहित प्रसेन सिंह द्वारा मारा गया है, परन्तु सिंह से भी बलवान् कोई है, जो इस गुफा में रहता है। मैं अपने पर लगे लोकापवाद को मिटाने के लिए इस गुफा में प्रवेश करता हूं और स्यमन्तकमणि लाने की चेष्टा करता हूं। यह कहकर श्रीकृष्ण उस गुफा में घुस गये। वहां उनका ऋक्षराज जाम्बवान् से इक्कीस दिनों तक घोर संग्राम हुआ। अन्त में शिथिल अंगोंवाले जाम्बवान् भगवान को पहचानकर उनकी प्रार्थना करते हुए कहा-हे प्रभो! आप ही मेरे स्वामी श्रीराम है, द्वापर में आपने इस रूप में मुझे दर्शन दिया। आपको कोटि-कोटि प्रणाम है। नाथ! मैं अर्घ्यस्वरूप अपनी इस कन्या जाम्बवती और यह मणि स्यमन्तक आपको देता हूं, कृपया ग्रहणकर मुझे कृतार्थ करें तथा मेरे अज्ञान को क्षमा करें। जाम्बवान् से पूजित हो श्रीकृष्ण स्यमन्तकमणि लेकर जाम्बवती के साथ द्वारका आये। वहां उनके साथ गये यादवगण बारह दिन बाद ही लौट आये थे। द्वारका में यह विश्वास हो गया कि श्रीकृष्ण गुफा में मारे गये, किन्तु श्रीकृष्ण को आया देख संपूर्ण द्वारका में प्रसन्न्ता की लहर दौड़ गयी। श्रीकृष्ण ने सब यादवों से भरी हुई सभा में वह मणि सत्राजित् को दे दी। सत्राजित् ने भी प्रायश्चितस्वरूप अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया। इस स्यमन्तकमणिका आख्यान जो कोई पढ़ता या सुनता है, उसे भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के चन्द्रदर्शन के दोष से मुक्ति मिल जाती है।

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स्वप्न विज्ञान (2)

स्वप्न के प्रकार तथा सफल स्वप्न:-

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(1) किसी समय में भी अनुभूत (अनुभव किया हुआ), (2) देखा हुआ, (3) सुना हुआ, (4) प्रकृति विकारजन्य, (5) स्वभाविक, (6) विचार श्रेणी के कारण, (7) देवता आदि के उपदेश से, (8) धर्म के प्रभाव से, (9) तथा अति पाप से उत्पन्न हुआ स्वप्न-ये 9 प्रकार के स्वप्न मनुष्यों को होते हैं।
इन 9 प्रकार के स्वप्नों में से प्रथम छः प्रकार के स्वप्न शुभ अथवा अशुभ जो देखे हों वे सब निरर्थक है, कुछ फल नहीं देते। तथा अन्तिम तीन प्रकार के स्वप्न सत्य होते हैं- फल देने वाले होते हैं।

फलदाता चार प्रकार के स्वप्नः-
– कार्य की सूचना देने वाले चार प्रकार के स्वप्न बहुत से आचार्यों ने बतााये हैं 1. प्रथम दैविक स्वप्न। 2. द्वितीय शुभ स्वप्न। 3. तृतीय अशुभ स्वप्न। तथा 4. चतुर्थ शुभ ओर अशुभ मिलेजुले स्वप्न। पहले प्रकार के दैविक स्वप्न मंत्र साधना द्वारा जाने जाते हैं।

स्वप्न अवस्था:-
-जिस समय मनुष्य न गहरी निद्रा में हो और न जाग रहा हो, उस समय इन्द्रियों के अधिपत्य से मन द्वारा सफल अथवा निष्फल अनेक प्रकार के स्वप्नों को देखता है।

निष्फल स्वप्न-
-दिन में देखा हुआ स्वप्न, या अत्यंत छोटा और अत्यन्त बड़ा, अत्यन्त वृद्धावस्था की घटना बताने वाला स्वप्न, अत्यन्त हास्य शोक कोप उत्साह निन्दा भय के कारणों से देखा गया स्वप्न, तथा भूख प्यास और मल मूत्र का वेग हो के साथ साथ देखा गया स्वप्न का कोई फल नहीं होता, अर्थात वह व्यर्थ जानना चाहिये।

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स्वप्न विज्ञान (1)

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निमित्त शास्त्र (भविष्य की घटनाओं को बताने वाला शास्त्र)-
निमित्त शास्त्र के आठ अंग (अष्टांग निमित्त) कहलाते हैं – 1. अंग विद्या, 2. स्वर विद्या, 3. लक्षण विद्या, 4. व्यंजन विद्या, 5. स्वप्न विद्या, 6. उत्पात विद्या, 7. भौम विद्या (वास्तु विद्या), 8. अन्तरिक्ष विद्या (ज्योतिष विद्या) इन आठ विद्याओं का ज्ञान निमित्त शास्त्र से होता है।

परिचय-
(क) जिन विद्या से अंग स्फुरण, (ख) मनुष्य की चेष्टाएं (गतिविधियां), (ग) दृष्टि, (घ) आवाज, (ङ) बातचीत, (च) पल्लिपतन, (छ) अवयव वर्ण, (ज) शकुन इत्यादि। इनके आधार पर शुभाशुभ कहा जाए उसका नाम अंग विद्या है।

1. अंग विद्या- सुप्त-जाग्रत अवस्था में जब बाहरी इन्द्रियां सो जाती हैं, (एक प्रकार से निष्क्रिय हो जाती हैं) तब आत्मा और मन की गति बढ़ जाती हैं, इनकी गति बढ़ जाने से जो मनुष्य को अनुभव होता है, वह अनुभव भूत-भविष्य-वर्तमान में घटनाओं का कारण बनता है। जो निद्रा अवस्था में दृष्य अनुभव होते हैं, इसे स्वप्न कहते हैं, और इस से भविष्य का अनुमान लगाने की विद्या को स्वप्न विद्या कहते हैं।
2. स्वर विद्या- जिसमें (1) प्राणियों की व्यक्त ध्वनियों, (2) उनकी सामान्य विशष चेष्टाओं, (3) बाल, (4) कुमार, (5) युवा, (6) वृद्ध, (7) मृत्यु अवस्था आदि विशेष संज्ञाओं के अनुसार भविष्य ज्ञान होता है, अथवा (8) नासिका में से निकलते हुए श्वास-प्रश्वास की गति द्वारा भविष्य कथन होता है, उसे स्वर विद्या कहते हैं।
3. भौम विद्या या वास्तु विद्या- जिसमें (1) पृथ्वी परीक्षा करके उस पर से पृथ्वी के अन्दर रहे हुए जल, रत्न, धन, कोष इत्यादि का ज्ञान हो अथवा (2) भूमि कम्पादि द्वारा देश तथा प्रजा के शुभाशुभ का कथन हो, अथवा (3) भूमि शोधन करके उस पर मकान, दुकान, बाग-बगीचा, मंदिर, नगर आदि निर्माण करना, (4) तत्सम्बन्धि अमुक लक्षणों को जानकर उस घर या शहर में रहने वाले प्राणियों के भूत, भविष्य-वर्तमान का भविष्य जाना जा सके। उसे भौम विद्या कहते हैं। इसी के अर्तगत वास्तु विद्या भी आती है।
4. व्यंजन विद्या- मानव शरीर पर के मस्से-तिल-या कोई चिन्ह देखकर भविष्य कथन करने की विद्या को व्यंजन विद्या कहते हैं।
5. लक्षण विद्या- (1) हाथ और शरीर की रेखाओं से, (2) शरीर के आकार से, (3) अंगों की रचना से, (4) तथा तिल-मसा, चिन्ह से जो शुभाशुभ का कथन किया जाये उसे लक्षण विद्या कहते हैं।
6. उत्पात विद्या – (1) भूमिकम्य, (2) रजोवृष्टि, (3) दिग्दाह आदि (4) पृथ्वी पर तथा आकाश में होने वाले उत्पातों से, (5) मेघ बिजली आदि के चमकने, गर्जने से, भविष्य कथन करने की विद्या को उत्पात विद्या कहते हैं।
8. ज्योतिष विद्या- (1) आकाश में इन्द्र धनुष, (2) चन्द्र सूर्य के ग्रहण, (3) ग्रहन क्षत्रों की गति, उदय अस्त, (4) वायु-बादल की गतिविधि, (5) या प्राणियों की गति विधि द्वारा भविष्य कथन की विद्या को अन्तरिक्ष विद्या या ज्योतिष विद्या कहते हैं।

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